Last Modified: Saturday, 20 April 2019

History of Bhatner Fort, Hanumangarh

दर्शनीय स्थल भटनेर दुर्ग का इतिहास



निर्माता  - अभय राव भाटी
निर्माण काल - 295 ई.
भौगोलिक स्थिति - 29° 37′ 0″ उत्तर, 74° 20′ 0″ पूर्व
प्रसिद्धि - पर्यटन स्थल





  • भूपत' के पुत्र 'अभय राव भाटी' ने 295 ई. में इस क़िले का निर्माण करवाया था।
  • यह क़िला भारतीय इतिहास की कई महत्त्वपूर्ण घटनाओं का साक्षी भी रहा है।
  • मोहम्मद गौरी और पृथ्वीराज चौहान के बीच प्रसिद्ध तराइन का युद्ध यहीं पर हुआ था।
  • कुतुबुद्दीन ऐबक, तैमूर और अकबर ने भी भटनेर में शासन किया है।
  • तैमूर ने अपनी आत्‍मकथा 'तुजुक-ए-तैमूरी' में लिखा है कि 'मैंने इस क़िले के समान हिन्दुस्तान के किसी अन्‍य क़िले को सुरक्षित और शाक्तिशाली नहीं पाया है।'
  • बीकानेर के सम्राट 'सूरत सिंह' ने 1805 ई. में भाटी से लड़ाई जीत कर इस स्थान पर क़ब्ज़ा कर लिया था। जिस दिन वह लड़ाई जीते उस दिन मंगलवार था। हनुमानगढ़ को तभी से भटनेर के साथ 'हनुमानगढ़' के नाम से भी जाना जाता है।


प्राचीन दिल्ली मुल्तान व्यापारिक मार्ग पर बने होने के कारण Bhatner Fort का अपना अलग ही सामरिक महत्त्व था| भगवान कृष्ण के वंशज यदुवंशी भाटी राजपूतों की वीरता और पराक्रम का साक्षी रहा यह दुर्ग बीकानेर से लगभग 144 मील उत्तर पूर्व में हनुमानगढ़ जिले में स्थित है| घघ्घर नदी पर बना यह दुर्ग “उत्तर भड़ किंवाड़” के यशस्वी विरुद से विभूषित भाटी व राठौड़ राजपूतों की अनेक गौरव गाथाओं को अपने में समेटे, अतीत की अनमोल ऐतिहासिक, सांस्कृतिक धरोहर को संजोये, काल की क्रूर विनाशलीला से अधिक हमारे उपेक्षापूर्व रवैये से आहत हुआ है| तैमूर जैसे क्रूर आक्रान्ता द्वारा उजाड़ने के बावजूद यह दुर्ग अपने चतुर्दिक चमकते बालुका कणों के रूप में भाग्य की विडम्बना पर आज अपने स्थान से अडिग खड़ा मूक हंसी हंस रहा है|
मध्य एशिया से होने वाले आक्रमणों को रोकने के लिए प्रहरी के रूप में भूमिका निभाने वाले इस किले के बारे में जनश्रुति है कि तीसरी शताब्दी के अंतिम चरण में यदुवंशी भाटी राजा भूपत ने इसका निर्माण करवाया था| आपको बता दें राजा भूपत ने गजनी के सुलतान के हाथों पराजय के बाद अपना राज्य खो दिया था| उनका राज्य लाहौर तक के विस्तृत भूभाग पर फैला था जो हाथ से निकलने के बाद उन्हें घघ्घर नदी के पास लाखी जंगल में शरण लेनी पड़ी| इस क्षेत्र में आने के बाद राजा भूपत ने इस उपजाऊ क्षेत्र में घघ्घर नदी के मुहाने एक सुदृढ़ किले का निर्माण कराया जो भाटी राजवंश के नाम पर भटनेर नाम से प्रसिद्ध हुआ|
मरुस्थल से घिरे इस किले का घेरा लगभग 52 बीघा भूमि पर फैला है| दुर्ग में अथाह जलराशि वाले कुँए है व किला विशाल बुर्जों द्वारा सुरक्षित है| किले का निर्माण लोहे के समान पक्की इंटों व चुने द्वारा किया गया है जो इसके स्थापत्य की प्रमुख विशेषता है| उत्तरी सीमा का प्रहरी होने के कारण भटनेर दुर्ग को जितने बाहरी आक्रमण झेलने पड़े, उतने शायद ही देश के किसी दुर्ग ने झेले होंगे| सन 1001 ई. में भटनेर दुर्ग को महमूद गजनवी का आक्रमण झेलना पड़ा| 13 वीं शताब्दी में यह दुर्ग सुलतान बलवान के अधीन रहा, उसका भाई शेरखां यहाँ का हाकिम रहा जिसने इस किले में रहते दुर्दांत मंगोलों का सफलतापूर्वक मुकाबला किया था|
1398 ई. में भटनेर दुर्ग को क्रूर लुटेरे तैमूर के आक्रमण का सामना करना पड़ा था| उस वक्त भटनेर के राजा राव दुलचंद ने लुटेरे तैमूर का मुकाबला किया पर वह उसे हार का सामना करना पड़ा| क्रूर तैमूर ने चार दिन तक भटनेर को खूब लूटा और किले में आश्रय लिए हजारों स्त्री – पुरुषों का बड़ी बेहरहमी से कत्ल किया| तैमूर ने भटनेर दुर्ग को पूरी तरह से उजाड़ कर रख दिया था| इस आक्रमण के बाद यह दुर्ग फिर भाटियों, जोहियों व चायलों के अधिकार में रहा| बाद में यह बीकानेर के राठौड़ शासकों के अधिकार में रहा| कई राजपूत राजवंशों व मुगलों के अधिकार में रहे इस दुर्ग पर अंतत: बीकानेर के महाराजा सूरतसिंह ने सन 1805 ई. में अधिकार कर लिया| महाराजा सूरतसिंह जी ने भटनेर दुर्ग पर पांच महीने घेरा रखने के बाद जाब्ता खां भट्टी से यह किला हासिल किया था|
1805 ई. में भाटी से लड़ाई जीत कर इस स्थान पर क़ब्ज़ा कर लिया था। महाराजा सूरतसिंहजी बीकानेर द्वारा मंगलवार को यह दुर्ग हस्तगत किये जाने के कारण भटनेर का नाम हनुमानगढ़ रख दिया गया और इस उपलक्ष में किले में हनुमानजी के एक मंदिर का निर्माण करवाया गया| महाराजा सूरतसिंह जी के पुत्र महाराजा दलपतसिंह जी के निधन के बाद उनकी छ: रानियाँ इसी दुर्ग में सती हो गई थी, जिनकी किले के प्रवेश द्वार पर एक राजा के साथ छ: स्त्रियों की आकृति बनी हुई है| बेशक किला आज जर्जर व भग्न अवस्था में है पर किले का इतिहास गरिमामय व गौरवशाली रहा है|